नई दिल्ली: हाल के एक शोध में वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक अब हवा के जरिए हमारे फेफड़ों तक पहुंच रहा है। इससे स्वस्थ कोशिकाओं में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों को बढ़ावा दे सकता है। मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ विएना के शोधकर्ताओं ने पाया कि हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक (Microplastic) और नैनो प्लास्टिक के सूक्ष्म कण न केवल फेफड़ों में प्रवेश करते हैं, बल्कि वे कोशिकाओं में ऐसी जैविक प्रतिक्रियाएं शुरू कर सकते हैं जो कैंसर की शुरुआत का संकेत देती हैं।
माइक्रोप्लास्टिक का व्यापक प्रसार
माइक्रोप्लास्टिक आज पर्यावरण के हर कोने में मौजूद हैं। अंटार्कटिका की बर्फ से लेकर समुद्र की गहराइयों, मिट्टी, बादलों और यहां तक कि हमारी सांस लेने वाली हवा में भी। ये कण हमारे खाने, पानी, रक्त, फेफड़ों और दिमाग तक पहुंच चुके हैं। जर्नल ऑफ हैजर्डस मैटेरियल्स में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक के ये महीन कण फेफड़ों की स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कैंसर की दिशा में ले जा सकते हैं।
शोध की मुख्य खोज
वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन में पॉलीस्टाइरीन (जो दही के कप और खाद्य पैकेजिंग में इस्तेमाल होता है) से बने माइक्रो और नैनो प्लास्टिक कणों का फेफड़ों की कोशिकाओं पर प्रभाव जांचा। परिणामों से पता चला कि स्वस्थ फेफड़े की कोशिकाएं इन कणों (0.00025 मिमी आकार) को कैंसर कोशिकाओं की तुलना में अधिक मात्रा में अवशोषित करती हैं। इस अवशोषण के बाद कोशिकाओं में डीएनए क्षति, ऑक्सीडेटिव तनाव और कैंसर से जुड़े सिग्नलिंग पथ सक्रिय हो जाते हैं। ये बदलाव कैंसर की प्रारंभिक अवस्था के संकेतक हैं।
स्वस्थ कोशिकाएं अधिक प्रभावित
शोध की सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि स्वस्थ कोशिकाएं माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आने पर अधिक प्रभावित होती हैं, जबकि कैंसर कोशिकाओं पर इसका असर कम देखा गया। प्रमुख शोधकर्ता करिन शेल्च के अनुसार, स्वस्थ कोशिकाएं डीएनए क्षति को ठीक करने में असमर्थ हो रही थीं और साथ ही वे ऐसे जैविक मार्गों को सक्रिय कर रही थीं जो कोशिका वृद्धि को बढ़ावा देते हैं।
वैज्ञानिक बलाज डोमे ने बताया कि ये बदलाव चिंताजनक हैं, क्योंकि वे फेफड़ों की स्वस्थ कोशिकाओं में कैंसर जैसी प्रक्रियाओं की शुरुआत का संकेत देते हैं।
कोशिकाओं की रक्षा प्रणाली पर असर
शोध में यह भी पाया गया कि माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आने पर कोशिकाएं अपने एंटीऑक्सीडेंट तंत्र को सक्रिय करती हैं ताकि प्लास्टिक कणों से होने वाले तनाव से बच सकें। शोधकर्ता बुसरा एर्नहोफर के अनुसार, यह कोशिकाओं की आत्मरक्षा का प्रयास है, लेकिन यह भी दर्शाता है कि माइक्रोप्लास्टिक का तनाव कोशिकाओं के लिए हानिकारक है।
तत्काल कार्रवाई की जरूरत
यह अध्ययन पर्यावरणीय प्लास्टिक प्रदूषण के गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों को उजागर करता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि माइक्रोप्लास्टिक के लंबे समय तक प्रभाव को समझने के लिए और शोध की जरूरत है, लेकिन वर्तमान निष्कर्ष पर्यावरणीय चिकित्सा और कैंसर अनुसंधान के बीच समन्वय की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। साथ ही, प्लास्टिक कचरे को कम करने और इसके पर्यावरणीय प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग करते हैं।