नई दिल्ली: ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से भारत ने अपनी हवाई रक्षा क्षमताओं का प्रभावशाली प्रदर्शन किया था। अब भारत एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि की ओर बढ़ रहा है, जिसमें देश में पहला ड्यूल स्टेल्थ ड्रोन विकसित किया जा रहा है। यह ड्रोन दुश्मन के रडार और इंफ्रारेड सेंसर दोनों को चकमा देने में सक्षम होगा, और इसकी सबसे खास विशेषता है ‘रामा’ तकनीक…
रामा तकनीक: स्टेल्थ का नया आयाम
‘रामा’ यानी Radar Absorption and Multispectral Adaptation एक स्वदेशी नैनो-टेक्नोलॉजी आधारित कोटिंग है, जो रडार सिग्नल को अवशोषित कर उन्हें ऊष्मा में बदल देती है। यह तकनीक ड्रोन की तापीय पहचान को भी काफी हद तक कम करती है, जिससे यह दुश्मन के रडार और इंफ्रारेड सेंसर को 97% तक धोखा दे सकती है। इस तकनीक को हैदराबाद की स्टार्टअप वीरा डायनामिक्स और बिनफोर्ड रिसर्च लैब्स ने रक्षा मंत्रालय के सहयोग से विकसित किया है।
ड्रोन की विशेषताएं
यह स्टेल्थ ड्रोन लगभग 100 किलोग्राम वजनी है और 50 किलोग्राम तक का पेलोड ले जाने में सक्षम है। पारंपरिक ड्रोनों की तुलना में यह ड्रोन दुश्मन की सीमा में कहीं अधिक प्रभावी ढंग से घुसपैठ कर सकता है। जहां सामान्य ड्रोनों की सफलता दर 25-30% होती है, वहीं रामा तकनीक से लैस यह ड्रोन 80-85% सफलता दर के साथ लक्ष्य तक पहुंच सकता है। यह युद्ध के मैदान में अधिक समय तक टिक सकता है और सटीक हमले करने में सक्षम है।
अंतिम परीक्षण और नौसेना में शामिल होने की योजना
वीरा डायनामिक्स के सीईओ साई तेजा के अनुसार, यह ड्रोन जल्द ही अंतिम परीक्षण चरण में प्रवेश करेगा। 2025 के अंत तक इसे भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल करने की योजना है। यह ड्रोन रडार और इंफ्रारेड गाइडेंस सिस्टम को चकमा देकर युद्ध में प्रभावी भूमिका निभा सकता है, क्योंकि दुश्मन आमतौर पर ड्रोनों को इन्ही तकनीकों से ट्रैक करता है।
मिसाइल परीक्षणों में भी भारत की ताकत
इस ड्रोन के साथ-साथ भारत ने ओडिशा के चांदीपुर टेस्ट रेंज से दो महत्वपूर्ण बैलिस्टिक मिसाइलों, पृथ्वी-2 और अग्नि-1, का सफल परीक्षण किया। पृथ्वी-2 पूरी तरह स्वदेशी मिसाइल है, जो 350 किमी तक की दूरी पर 1,000 किलोग्राम पेलोड के साथ सटीक हमला कर सकती है। वहीं, अग्नि-1 मिसाइल 700-900 किमी की रेंज में 1 टन विस्फोटक ले जाने की क्षमता रखती है। ये उपलब्धियां भारत की रक्षा क्षमताओं को और मजबूत करती हैं।