अलकतरा घोटाले में जिसको 26 साल से तलाश रही पुलिस, उसकी 2011 में ही हो गई मौत

गया में 26 साल से जांच पूरा होने का इंतजार कर रहे घपले-घोटाले से जुड़े एक मुकदमे की दास्तान के साथ जानेंगे कि बिहार के 1300 थानों में दो लाख से ज्यादा केस की जांच क्यों पड़ी है अधूरी? रिपोर्ट गया से एसके उल्लाह, गुड्डू की है।

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गया: बिहार के गया जिले के शेरघाटी थाने में दर्ज 26 साल पुराने अलकतरा घोटाले के एक मामले में पुलिस जिस कार्यपालक अभियंता को ढूंढ रही है, उनकी मौत वर्ष 2011 में ही हो गई है। ओबैदुर्रहमान नाम का यह कार्यपालक अभियंता मुकदमा दर्ज होने के समय आरइओ (अब आरडब्ल्यूडी) के शेरघाटी डिवीजन में तैनात थे।
दो दशक से अधिक समय की खोज के बाद इस कांड के जांच अधिकारी अरविंद यादव को पता चला कि सेवानिवृति के बाद कार्यपालक अभियंता अपने परिवार के साथ पटना के सुल्तानगंज थाना क्षेत्र में रह रहे थे, मगर वर्ष 2011 में ही उनका निधन हो गया था। परिजनों ने जांच अधिकारी को इसकी जानकारी दी। इंजीनियर के मृत्यु प्रमाण पत्र भी पुलिस को उपलब्ध कराए गए।
मामला 1999 में ग्रामीण निर्माण विभाग (पहले का आरईओ) के शेरघाटी डिवीजन का है। इसमें सड़क बनाने में इस्तेमाल होने वाले अलकतरा की खरीद में करीब 7 लाख रुपये की गड़बड़ी के सामने आई थी। इसके बाद तत्कालीन सीओ ने शेरघाटी थाने में घपलेबाजी के आरोप में सात अभियुक्तों के खिलाफ नामजद मुकदमा (127/99) दर्ज कराया था। पुलिस के मुताबिक, शुरुआती में सात में से संवेदक सहित दो अभियुक्तों को निर्दोष करार दिया गया। वहीं, पांच के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने का फैसला लिया गया था।
मुकदमे की कार्रवाई आगे बढ़ने के साथ पुलिस को जिनकी तलाश थी, उनमें तत्कालीन कार्यपालक अभियंता ओबैदुर्रहमान के अलावा लेखापाल दिनेश सिंह, जेई श्याम किशोर यादव, रोकड़पाल सीताराम स्वर्णकार व दफ्तर के चौकीदार का नाम भी शामिल था। चौकीदार ने तो अदालत में आत्मसमर्पण कर जमानत ले ली थी, लेकिन तबादला होने से चार अन्य अभियुक्तों का कोई पता नहीं चल सका था। उधर, एक के बाद एक जांच अधिकारी भी बदलते गए। इससे भी केस की पड़ताल करने लटकती रही। इस मामले के वर्तमान जांच अधिकारी सब इंस्पेक्टर अरविंद यादव से पूर्व कम से कम 16 अनुसंधान अधिकारी बदल चुके हैं, मगर अब तक अभियुक्तों की धर-पकड़ तो दूर, उनके नाम-पते का सत्यापन तक नहीं हो सका था।

रोकड़पाल ने औरंगाबाद में और जेई ने गया में बनाया है ठिकाना
अब ताजा खोजबीन से जांच अधिकारी को पता चला है कि रिटायरमेंट के बाद एक आरोपी ने अपना ठिकाना बना रखा है। वहीं, दूसरा आरोपी गया शहर के एपी कॉलोनी इलाके में हैं। पुलिस ने इन अभियुक्तों के घर दस्तक दी है। अभियुक्तों में शामिल रोकड़पाल सीताराम स्वर्णकार का अब तक कोई पता नहीं चला है। पुलिस उनको ढूंढ रही है। पुलिस अब इन अभियुक्तों के खिलाफ अदालत से गिरफ्तारी वारंट लेने की कोशिश में है।

जांच में इसलिए आई तेजी
बीस साल पुराने मामलों की जांच में तेजी बिहार पुलिस के डीजीपी विनय कुमार और एडीजी के बतौर कुंदन कृष्णन की तैनाती के बाद आई है। आईपीएस विनय कुमार सीआईडी में लंबे समय तक रहने के कारण एक बेहतरीन जांच अधिकारी माने जाते हैं। वहीं, एसटीएफ में तैनाती के दौरान अपराधियों के खिलाफ प्रभावी अभियान चलाने वाले कुंदन कृष्णन की छवि एक कड़क और इमानदार पुलिस अधिकारी की रही है। दोनों अधिकारियों ने जांच के तरीकों में कई बदलाव करने के साथ मॉनिटरिंग की भी पक्की व्यवस्था की है। इसका असर थाना स्तर पर पड़ा है।

बीस साल से लंबित थी 300 मुकदमों की जांच
पुलिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे बिहार में ऐसे 300 से अधिक मुकदमे थे, जिनकी जांच दो दशक से भी ज्यादा समय से लंबित है। उधर, बीते साल सितंबर में बिहार के मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा की अध्यक्षता में पुलिस अधिकारियों की बैठक में पता चला कि समूचे राज्य के करीब 1300 थानों में 2.67 लाख मुकदमे जांच के लिए लंबित हैं। राज्य में जांच अधिकारियों की संख्या भी करीब 18 हजार थी। इसमें फैसला लिया गया कि अगले छह महीनों के भीतर लंबित मामलों की संख्या को घटाकर एक लाख तक लानी है। इसके लिए थाना स्तर पर मिशन अनुसंधान@75 भी शुरू किया गया था, जिसमें 75 दिनों के भीतर अनुसंधान कार्य पूरा करने और गंभीर मामलों में 60 दिनों के अंदर पुलिसिया जांच पूरा करने का संकल्प लिया गया था।

शेरघाटी थाने में 900 से अधिक मुकदमे हैं लंबित
शेरघाटी थाने में भी मई 2025 की एक रिपोर्ट के अनुसार जांच पूरा होने के इंतजार में 968 मुकदमे पड़े हैं। जांच अधिकारियों पर काम के अतिरिक्त बोझ के साथ कुछ हद तक इनकी सुस्ती भी बड़ी संख्या में लंबित मुकदमों की वजह रही है।

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