Special Intensive Revision से राजी नहीं भारत जोड़ो अभियान, ECI से निर्देश वापस लेने की अपील

निर्वाचन आयोग ने बिहार के लिए 24 जून को Special Intensive Revision (विशेष गहन पुनरीक्षण) का निर्देश जारी किया है। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, 25 जून से 30 सितंबर तक चलने वाली इस पहल का मकसद हर पात्र मतदाता को मतदाता सूची से जोड़ना और अपात्र को हटाना है। इससे एतराज जताते हुए भारत जोड़ो अभियान ने कहा है कि इन निर्देशों को तुरंत वापस लिया जाए। साथ में जनवरी में जारी की गई मतदाता सूची के संक्षिप्त पुनरीक्षण की प्रक्रिया का पालन किया जाए। वहीं, मतदाता सूची में नाम होने की जिम्मेदारी मतदाता पर न डाली जाए।

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पटना: निर्वाचन आयोग विशेष गहन पुनरीक्षण से जुड़े निर्देश पर भारत जोड़ो अभियान ने गहरी चिंता भी जाहिर किया। अभियान का मानना है का पहली नजर में यह घोषणा चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने की एक सामान्य प्रक्रिया प्रतीत होती है, लेकिन इसके विवरणों से स्पष्ट होता है कि यह फरमान करोड़ों नागरिकों को उनके मताधिकार से वंचित कर सकती है।
राजधानी पटना में मीडिया से बात करते हुए भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय सह-संयोजक योगेंद्र यादव ने बताया कि आयोग के निर्देशों के बाद जिन व्यक्तियों का नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं है, उन्हें नागरिकता अधिनियम और नियमों के अनुसार अपनी नागरिकता साबित करनी होगी।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए योगेंद्र यादव ने बताया, 2025 में बिहार में 8.08 करोड़ योग्य मतदाता हैं। इसमें से 59 फीसद आबादी 40 वर्ष या उससे कम आयु की है। यह संख्या करीब 4.76 करोड़ बैठेगी‌। निर्वाचन आयोग के निर्देश के अनुसार एक जुलाई से 31 जुलाई 2025 के बीच इन 4.76 करोड़ लोगों को अपनी नागरिकता सिद्ध करनी होगी।
योगेंद्र यादव ने आगे बताया कि इस 4.76 करोड़ की आबादी को तीन समूहों में बांटा जा सकता है; करीब 4 फीसदी लोग; जो 39-40 वर्ष की उम्र के हैं, इन्हें अपनी नागरिकता के दस्तावेज प्रस्तुत करने हैं। 20-38 आयु वर्ग के करीब 85 फीसदी लोगों को अपने पिता या माता की नागरिकता के दस्तावेज प्रस्तुत करने हैं। वहीं, 18-20 वर्ष की उम्र के करीब 11 फीसदी लोगों को अपने माता-पिता के नागरिकता संबंधी दस्तावेज देने हैं।
योगेंद्र यादव ने सवाल किया क्या बिहार का आम नागरिक निर्वाचन आयोग की तरफ से मान्य अपने पिता या माता का जन्म तिथि और जन्म स्थान का प्रमाण पत्र ला सकता है? वह इसलिए कि निर्वाचन आयोग से मान्य 11 दस्तावेजों में से तीन अपेक्षाकृत अधिक आम हैं: जन्म प्रमाणपत्र, मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र और जाति प्रमाणपत्र। वहीं, जन्म प्रमाणपत्र, मैट्रिक प्रमाण पत्र व जाति प्रमाण पत्र दे पाना अपेक्षाकृत मुश्किल है। क्योंकि;

  • National Family Health Survey यानि NFHS-3 के अनुसार, 2001-2005 में जन्मे बच्चों में केवल 2.8% के पास जन्म प्रमाणपत्र था। इससे स्पष्ट है कि 1965-1985 के बीच जन्मे लोगों में यह संख्या नगण्य होगी।
  • NFHS-2 के अनुसार, आज 40-60 वर्ष के पुरुषों में से केवल 10-13% ने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की है।
  • India Human Development Survey (2011-12) के अनुसार, अनुसूचित जातियों के लगभग 20 फीसदी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लगभग 25 फीसदी लोगों के पास जाति प्रमाणपत्र था। तथाकथित उच्च जातियों में तो यह अनुपात और भी कम होगा। इसलिए औसतन 20 फीसदी से भी कम परिवारों के पास यह प्रमाणपत्र उपलब्ध है।

स्पष्ट है कि अधिकतम लोगों के पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है, जिससे उनकी जन्म तिथि और जन्म स्थान सिद्ध हो सके। उनके बेटे-बेटियां, जो आज मतदान योग्य हैं, इसलिए मताधिकार से वंचित हो सकते हैं-सिर्फ इसलिए नहीं कि वे अवैध प्रवासी हैं, बल्कि इसलिए कि राज्य सरकार कभी दस्तावेज देने में सक्षम नहीं रही।
योगेंद्र यादव ने मांग की कि आयोग अपने निर्देश वापस ले। वहीं, अभियान के दूसरे राष्ट्रीय संयोजक विजय महाजन ने कहा कि मतदाता सूची में नाम न होने की जिम्मेदारी मतदाताओं पर न डाली जाए। दोनों नेताओं ने कहा कि हम निर्वाचन आयोग से अपील करते हैं कि इस प्रक्रिया को तत्काल रोका जाए। हम सभी राजनीतिक दलों और जन संगठनों से इस खतरे के प्रति देश को आगाह करने की अपील करते हैं और पूरे देश में इसके खिलाफ तैयारी की जाए।

भारत जोड़ो अभियान के सवाल

  • अचानक 22 वर्षों बाद विशेष गहन पुनरीक्षण क्यों?
  • बिहार विधानसभा चुनावों से सिर्फ तीन महीने पहले क्यों?
  • जब यह प्रक्रिया जनवरी की वार्षिक संक्षिप्त पुनरीक्षण के समय की जा सकती थी, तब क्यों नहीं की गई?
  • सभी राजनीतिक दलों से चर्चा किए बिना इतना बड़ा बदलाव कैसे किया जा सकता है?
  • जब किसी मतदाता को अमान्य करना राज्य की जिम्मेदारी है, तो नागरिकों पर ही नागरिकता सिद्ध करने की जिम्मेदारी क्यों डाली जा रही है?

अभियान की तीन मांगे

  • इन निर्देशों को तुरंत वापस लिया जाए, और जनवरी में जारी की गई मतदाता सूची के संक्षिप्त पुनरीक्षण की प्रक्रिया का पालन किया जाए।
  • इसे देशभर में लागू करने से पहले सभी पंजीकृत दलों और जन संगठनों के साथ पूर्ण चर्चा की जाए।
  • मतदाता सूची में नाम होने की जिम्मेदारी मतदाता पर न डाली जाए।

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