सौर ऊर्जा से पानी को Green Hydrogen में बदलने वाला नया उपकरण

इसे बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए भी उपयुक्त बनाया गया है। बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) के वैज्ञानिकों ने इस नवाचार को अंजाम दिया है, जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्थान है।

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नई दिल्ली: भारतीय वैज्ञानिकों ने एक अत्याधुनिक उपकरण विकसित किया है, जो सूर्य की रोशनी का उपयोग करके पानी को ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen) में बदल सकता है। यह उपकरण न केवल किफायती और टिकाऊ है, बल्कि इसे बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए भी उपयुक्त बनाया गया है।

बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) के वैज्ञानिकों ने इस नवाचार को अंजाम दिया है, जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्थान है। इस खोज से भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में बड़ी मदद मिल सकती है।  

ग्रीन हाइड्रोजन: भविष्य का ईंधन  

ग्रीन हाइड्रोजन को पर्यावरण के अनुकूल और भविष्य का सबसे स्वच्छ ईंधन माना जाता है। यह न केवल औद्योगिक उत्सर्जन को कम करने में उपयोगी है, बल्कि वाहनों को चलाने और नवीकरणीय ऊर्जा को संग्रहित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालांकि, इसे सस्ते और बड़े पैमाने पर उत्पादन करना अब तक एक चुनौती रहा है।

डॉ. आशुतोष के. सिंह के नेतृत्व में सीईएनएस की टीम ने इस समस्या का समाधान ढूंढ लिया है। उन्होंने एक सिलिकॉन-आधारित फोटोएनोड विकसित किया है, जो सौर ऊर्जा की मदद से पानी के अणुओं को तोड़कर हाइड्रोजन उत्पन्न करता है। इस प्रक्रिया में जीवाश्म ईंधन या महंगे संसाधनों की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती।  

उपकरण की खासियत और तकनीक  

वैज्ञानिकों ने इस उपकरण में एक विशेष तकनीक, एन-आई-पी हेटेरोजंक्शन, का उपयोग किया है। इसमें तीन सेमीकंडक्टर परतें-एन-टाइप टीआईओ2, अनडॉप्ड सिलिकॉन, और पी-टाइप एनआईओ—शामिल हैं। इन परतों को मैग्नेट्रॉन स्पटरिंग तकनीक से तैयार किया गया है, जो औद्योगिक स्तर पर सटीक और लागत प्रभावी है। यह संरचना सूरज की रोशनी को कुशलतापूर्वक अवशोषित करती है, चार्ज स्थानांतरण को तेज करती है, और ऊर्जा हानि को कम करती है।

यह उपकरण प्रयोगशाला में ही नहीं, बल्कि वास्तविक परिस्थितियों में भी प्रभावी साबित हुआ है। इसने 600 मिलीवोल्ट का सतह फोटोवोल्टेज और मात्र 0.11 वीआरएचई का ऑनसेट पोटेंशियल हासिल किया, जो इसे सौर हाइड्रोजन उत्पादन के लिए अत्यंत कुशल बनाता है। इसके अलावा, यह उपकरण क्षारीय वातावरण में 10 घंटे तक लगातार काम कर सकता है, जिसमें प्रदर्शन में केवल 4% की कमी देखी गई। यह सिलिकॉन-आधारित फोटोइलेक्ट्रोकेमिकल सिस्टम के लिए एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।  

बड़े पैमाने पर उत्पादन की संभावना  

इस उपकरण की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सस्ता, टिकाऊ, और स्केलेबल है। शोधकर्ताओं ने 25 वर्ग सेंटीमीटर के बड़े फोटोएनोड पर भी उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त किए हैं। डॉ. सिंह ने बताया, “हमने स्मार्ट सामग्रियों का चयन और उनकी सटीक संरचना के जरिए एक ऐसा उपकरण बनाया है, जो न केवल बेहतर प्रदर्शन करता है, बल्कि बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए भी तैयार है। यह सौर ऊर्जा से हाइड्रोजन उत्पादन को सस्ता और व्यावहारिक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।”  

वैश्विक और राष्ट्रीय महत्व  

इस शोध के नतीजे रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री के जर्नल ऑफ मैटेरियल्स केमिस्ट्री ए में प्रकाशित हुए हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह तकनीक भविष्य में घरों, फैक्ट्रियों, और उद्योगों में सौर ऊर्जा आधारित हाइड्रोजन ऊर्जा प्रणाली को वास्तविकता बना सकती है। भारत, जो 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य लेकर चल रहा है, के लिए यह खोज बेहद महत्वपूर्ण है।

विशेषज्ञों के अनुसार, 2050 तक भारत में हाइड्रोजन की मांग पांच गुना बढ़ सकती है, और वैश्विक ऊर्जा में हाइड्रोजन की हिस्सेदारी 12% तक पहुंच सकती है। वर्तमान में चीन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन में अग्रणी है, जो सालाना 2.4 करोड़ टन से अधिक हाइड्रोजन का उपयोग करता है। भारत के इस नवाचार से वैश्विक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में उसकी स्थिति मजबूत हो सकती है।

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