नई दिल्ली: वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि न केवल मानव जीवन, बल्कि समुद्री जीवों के लिए भी गंभीर खतरा बन रही है। प्रवाल भित्तियां, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, गर्म होते महासागरों से बचने के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ठंडे क्षेत्रों की ओर बढ़ रही हैं। हालांकि, उनकी यह गति इतनी धीमी है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रभावों से बच पाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण है। यह खुलासा ‘साइंस एडवांसेज’ जर्नल में प्रकाशित एक नए शोध में हुआ है। हवाई विश्वविद्यालय के हवाई इंस्टीट्यूट ऑफ मरीन बायोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को तुरंत कम किया जाए, तो प्रवाल भित्तियों के भविष्य को बचाने की संभावना बढ़ सकती है।
प्रवाल भित्तियों का धीमा पलायन
शोध के प्रमुख लेखक नोआम वोग्ट-विंसेंट ने बताया कि जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, प्रवाल भित्तियां ठंडे क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित हो रही हैं। इतिहास में भी जलवायु परिवर्तन के दौरान प्रवालों ने अपने क्षेत्र का विस्तार किया है, लेकिन यह प्रक्रिया दशकों या सदियों में पूरी होती है। शोधकर्ताओं ने सुपरकंप्यूटर की मदद से एक वैश्विक मॉडल विकसित किया, जिसमें लगभग 50,000 प्रवाल भित्तियों को शामिल किया गया। इस मॉडल में प्रवालों की वृद्धि, प्रसार, अनुकूलन क्षमता और गर्मी सहनशीलता जैसे कारकों को ध्यान में रखा गया।
जलवायु परिदृश्य और प्रवालों का भविष्य
शोध में तीन जलवायु परिदृश्यों का विश्लेषण किया गया। पहले परिदृश्य में सदी के अंत तक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि, दूसरे में 3 डिग्री और तीसरे, सबसे गंभीर परिदृश्य में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अनुमान लगाया गया। अध्ययन से पता चला कि प्रवाल भित्तियां उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से बाहर की ओर फैल रही हैं, लेकिन यह प्रक्रिया बेहद धीमी है और इसमें सदियां लग सकती हैं। अगले 60 वर्षों में प्रवाल भित्तियों को सबसे अधिक नुकसान होने की आशंका है, जिसका मतलब है कि ठंडे क्षेत्रों में नई भित्तियों का निर्माण समय पर नहीं हो पाएगा। इससे उष्णकटिबंधीय प्रवाल प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
नई भित्तियों की संभावना
शोध के अनुसार, भविष्य में उत्तरी फ्लोरिडा, दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी जापान जैसे क्षेत्रों में नई प्रवाल भित्तियां बन सकती हैं। हालांकि, यह बदलाव इतना धीमा होगा कि इस सदी में प्रवालों को बचाने में ज्यादा मदद नहीं मिलेगी। अध्ययन में यह भी सामने आया कि यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए पेरिस समझौते जैसे कड़े कदम उठाए जाएं, तो प्रवाल भित्तियों को होने वाले नुकसान को काफी हद तक रोका जा सकता है।
उम्मीद की किरण
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मौजूदा स्थिति में 86% प्रवाल भित्तियां नष्ट हो सकती हैं, लेकिन उत्सर्जन में कमी से इस नुकसान को एक-तिहाई तक सीमित किया जा सकता है। वोग्ट-विंसेंट के अनुसार, ग्रीनहाउस गैसों में कमी न केवल इस सदी, बल्कि आगामी सैकड़ों-हजारों वर्षों तक प्रवाल भित्तियों के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगले कुछ दशकों में लिए गए निर्णय इन नाजुक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों के भविष्य को निर्धारित करेंगे।