पटना: तेजस्वी यादव के आवास पर बृहस्पतिवार महागठबंधन की बुलाई गई है। इससे पहले बिहार कांग्रेस ने प्रदेश में बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे को लेकर पटना की सड़कों पर बड़ा प्रदर्शन किया।
महागठबंधन की बैठक से पहले किए गए प्रदर्शन के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। कांग्रेस ने प्रदर्शन का समय ठीक बैठक से पहले इसलिए रखा कि सीट शेयरिंग की बातचीत की टेबल पर जाने से पहले जमीन पर ताकत दिखाई जा सके।
प्रदर्शन में राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की मौजूदगी से यह साबित भी होता है। 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान में पटना की सड़कों पर राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा, यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय भानु चिब, कांग्रेस नेता बजरंग पुनिया ने पसीना बहाया।
इसमें सीधे तौर पर कांग्रेस ने सत्ता पक्ष को घेरा। लेकिन उसका संदेश गठबंधन में शामिल दलों के लिए भी था। इसके जरिए कांग्रेस ज्यादा सीटों पर दावेदारी पेश करेगी।
दरअसल, 2020 विधानसभा में कांग्रेस अपेक्षा के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर सकी थी। महागठबंधन की सरकार न बनने के पीछे भी कई नेताओं ने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था। बात कांग्रेस के जनाधार की हो रही थी। ऐसी स्थिति में कांग्रेस अलग-अलग तरीकों से प्रदेश में अपना दमखम दिखा रही है।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की नजर भी बिहार की सियासी गतिविधियों पर है। वह जरूरत के हिसाब से प्रदेश का दौरा भी कर रहे हैं। बृहस्पतिवार बैठक के कुछ घंटे पहले का यह प्रदर्शन भी इसी कड़ी का हिस्सा है। इसमें पार्टी ने अपने सहयोगी दलों को संदेश देने की कोशिश की है कि उसको कम आंकना सियासी तौर पर ठीक नहीं होगा।
2020 विधानसभा में कांग्रेस 70 में 19 सीटों पर जीती थी
2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन न करने की वजह से तेजस्वी यादव सरकार नहीं बना सके। 2020 कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसमें से केवल 19 सीटों पर सफलता मिली। इस तरह स्ट्राइक रेट महज 27 फीसदी रही। वहीं, राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 75 सीटों पर जीत दर्ज कर गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी।
क्या तेजस्वी कांग्रेस पर भरोसा करेंगे?
2020 में जिस तरह से कांग्रेस का प्रदर्शन रहा, उसके बाद महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राजद फिर से कांग्रेस पर भरोसा करेगा। महागठबंधन से बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों के लिहाज से सीटों का बंटवारा चार दलों के बीच होना है। राजद सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण स्वाभाविक रूप से अधिक सीटों पर दावा करेगी। वहीं, वीआईपी के जुड़ने से कांग्रेस और लेफ्ट के हिस्से की सीटें घट सकती हैं।
वीआईपी ने बढ़ाई कांग्रेस की चिंता
वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने यह पहले ही बता दिया है कि कांग्रेस और राजद दोनों से कुछ सीटें निकाली जाएंगी और नए सिरे से बंटवारा होगा। मुकेश सहनी ने कहा है कि वीआईपी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, इसका फैसला महागठबंधन की बैठक में आपसी चर्चा से किया जाएगा। इस बार की परिस्थितियां 2020 से अलग हैं। इस बार वीआईपी भी महागठबंधन का हिस्सा है और हमारे पास भी जनाधार है।