पटना: बिक्रम विधानसभा पाटलिपुत्र विधानसभा के 6 विधानसभा में से एक है। आजादी के बाद सीट पर जब पहली बार 1957 यहां आम चुनाव हुए तो कांग्रेस उम्मीदवार मनोरमा देवी ने जीत दर्ज की। 1962 में भी इस पर कब्जा मनोरमा देवी का ही रहा।
इस सीट पर अब तक 16 बार आम चुनाव हुए हैं। इसमें सबसे ज्यादा कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली इस विधान सभा सीट का कई कद्दावर नेताओं ने प्रतिनिधित्व किया है। दिलचस्प यह कि यहां से राजद सुप्रीमो की बेटी मीसा भारती को लगातार दो बार हार का सामना करना पड़ा। वामपंथ और कांग्रेस के इस गढ़ में बीजेपी ने दो बार झंडा बुलंद किया है।
2020 विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के सिद्धार्थ सौरव ने चुनाव जीत दर्ज की थी। 2024 में भाजपा में शामिल हो गये। इसको लेकर राजनीतिक हलचल भी तेज हुई राजनीतिक विवाद भी हुआ पर उनकी विधायक की सदस्यता बरकरार रही। 2025 विधानसभा चुनाव में क्या NDA के तरफ से सिद्धार्थ सौरव होंगे या कोई और ये देखना दिलचस्प होगा।
संभावित उम्मीदवार
NDA की तरफ से अगर यह सीट भाजपा को मिलती है तो सिद्धार्थ सौरव की दावेदारी पक्की मानी जा रही है। वही, पूर्व विधायक अनिल कुमार, पूर्व प्रत्याशी भाजपा नेता अतुल कुमार, राजद नेता अजित कुमार, कांग्रेस नेता मंटू शर अपनी-अपनी पार्टियों से दावा ठोंक रहे हैं।
1957 से 2020 तक का सियासी सफर
1957: मनोरमा देवी (कांग्रेस)
1962: मनोरमा देवी (कांग्रेस)
1967: महावीर गोप (कांग्रेस)
1969: खदेरन सिंह (भारतीय क्रांति दल)
1972: खदेरन सिंह (कांग्रेस)
1977: राजो सिंह (जनता पार्टी)
1980: राजो सिंह (कांग्रेस)
1985: राजो सिंह (निर्दलीय)
1990: राजो सिंह (कांग्रेस)
1995: राजो सिंह (कांग्रेस)
2000: संजय कुमार सिंह (कांग्रेस)
2005: आशा देवी (बीजेपी)
2010: अनिल कुमार (बीजेपी)
2015: सिद्धार्थ सौरव (कांग्रेस)
2020: सिद्धार्थ सौरभ (कांग्रेस)
जातीय समीकरण
बिक्रम विधानसभा पर सबसे अधिक प्रभाव भूमिहार जाति का है। यहां की कुल आबादी में यहां करीब एक चौथाई भूमिहार की है। इसके बाद यादव और रविदास भी निर्णायक संख्या में हैं। 2000 में सबसे अधिक वोट 74 प्रतिशत वोट पड़े थे।
मतदाता
कुल मतदाता: 3.04 लाख
पुरुष मतदाता: 1.58 लाख (51.9%)
महिला मतदाता: 1.46 लाख (48.0%)
ट्रांसजेंडर मतदाता: 14 (0.004% )
बिक्रम में और भी है खास
सोन नदी के तट पर बसा बिक्रम विधानसभा ने कई धरोहरों को समेटकर रखा है। भौगोलिक दृष्टिकोण से देखें तो यहां की भूमि समतल है।मिट्टी सोन नदी द्वारा उपजाऊ बनी रहती है। यह पास से बहती हुई गंगा नदी में मिल जाती है। इस कारण यह क्षेत्र कृषि के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।
यह क्षेत्र राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का कर्मस्थली रहा है। यहां ऐतिहासिक गांधी आश्रम है, जहां स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी आये थे और ठहरे थे। उन्होंने 1921 में इस आश्रम की नींव रखी थी। यहीं पर मशहूर विचारक और भूदान आंदोलन का प्रणेता विनोबा भावे अपने तीन भाइयों के साथ कई दिनों तक ठहरे थे।