नई दिल्ली: ब्रह्मांड के अस्तित्व में आने पर अनेक मत आए। बहुमत बिग बैंग सिद्धांत की तरफ है। विज्ञान में यहां तक सहमति है कि शुरुआत में एक जगह पर सघन द्रव्यमान था। कुछ वजहों से इसके अंदर विस्फोट हुआ। विस्फोट भी किसी पटाखे या बम की तरह एक जगह नहीं, बल्कि निश्चित दायरे में एक साथ पल भर में ही धमाका हुआ। इससे निकले असंख्य टुकड़े इधर-उधर फैलने लगे। लट्टू की तरह अपनी धुरी पर घूमने के साथ इन टुकड़ों में एक-दूसरे से दूर जाने की होड़ भी लग गई। विस्फोट का होना बिग बैंग और एक-दूसरे से दूर जाना ब्रह्मांड के विस्तार का सिद्धांत है, जो कि अभी जारी है।
दिलचस्प संयोग
संदर्भ हालांकि विज्ञान से नहीं है, फिर भी है बड़ा दिलचस्प। आधुनिक विज्ञान की यह ध्वनि हमारे दर्शन में सुनी जा सकती है। सहस्राब्दियों पहले छांदोग्य उपनिषद में कहा गया है कि जगत की उत्पत्ति से पहले एक ही तत्व परमात्मा पिंड रूप में था। उसमें ‘एकोहं बहुस्याम’ (मैं एक हूं बहुत हो जाऊं) का विचार आया। इससे वह फट पड़ा और महा प्रकृति की रचना कर डाली। विस्फोट से सत, रज, तम तीन गुण निकले। इन्हीं से सृष्टि का निर्माण हुआ। और 84 लाख योनियों का निरंतर विस्तार होता चला गया।
पहली ब्रेकिंग
खैर, बात करते हैं 1956 साल की एक घटना पर। अमेरिका के न्यू जर्सी शहर में मुर्रे हिल पर बेल टेलीफोन प्रयोगशाला में आर्नो पेनजियास और रॉबर्ट विल्सन एक रेडियो रिसीवर बना रहे थे। इस दौरान रिसीवर में उन्हें कुछ त्रुटि या बाधा पता चली। वे इसका स्रोत नहीं जान सके। जब यह खबर फैली तो स्रोत का पता लगाने के लिए पड़ोस में ही प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की दिलचस्पी जाग पड़ी। बेल टेलीफोन प्रयोगशाला में सभी जुटे। आखिरकार रेडियो रिसीवर में हुई बाधा के स्रोत का पता लगा ही लिया गया।
रेडियो रिसीवर पर अचानक सिग्नल में आई त्रुटि या बाधा ब्रह्मांड की प्रारंभिक अवस्था का 13.8 अरब वर्ष पुराने रहस्य का एक बेहद जरूरी संदेशा था। वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड की इन सूक्ष्म तरंगों की पहचान कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (सीएमबी) यानी खगोल सूक्ष्म तरंगों की पृष्ठभूमि के तौर पर की। इस सीएमबी ने ब्रह्मांड की शुरुआत और विस्तार के रहस्य का पहला बड़ा पर्दा खोला, जिससे वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड के शुरुआत होने का एक मजबूत वैज्ञानिक सिद्धांत बनाने में मदद मिली।
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सीएमबी
सीएमबी ब्रह्मांड की प्रारंभिक अवस्था में पैदा हुए काफी गर्म विकिरणों का अवशेष ही हैं। इसका पता लगाने वाली असाधारण खोज के लिए 1978 में पेनजियास और विल्सन को भौतिकी के नोबेल सम्मान से नवाजा गया है। 1965 में ही सीएमबी की खोज के समय कुछ और भी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक बहस जारी थी।
वैज्ञानिक बहस
वैज्ञानिकों के बीच ब्रह्मांड की शुरुआत के सिद्धांत को लेकर मतभेद बना हुआ था। अधिकांश यह मानते थे कि ब्रह्मांड की शुरुआत नहीं हुई है बल्कि वह शाश्वत है या फिर ब्रह्मांड की रचना हुई है। शायद ब्रह्मांड की शुरुआत शब्द से धारणाओं के ढह जाने का डर था।
दिवंगत वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने 2007 में बताया, ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी, इस सिद्धांत को नकारने की एक जबरदस्त कोशिश हुई। सुझाव दिया गया कि ब्रह्मांड का एक पिछला संकुचन काल भी था। लेकिन लगातार घूर्णन और कुछ दूसरी असमानताओं के कारण सारा पदार्थ एक ही जगह नहीं गिरा होगा बल्कि पदार्थ के अलग-अलग हिस्से हो गए होंगे और इसलिए शेष सीमित घनत्व के साथ ब्रह्मांड का विस्तार एक बार फिर होगा।
हॉकिंग के मुताबिक, यह दावा दो रूसी वैज्ञानिकों लिफशिट्ज और ख्लातनिकोव का था। उनका कहना था कि उन्होंने साबित कर दिया है कि असमानताओं के साथ होने वाला असंतुलित संकुचन, घनत्व को अपरिवर्तित रखते हुए हमेशा एक उछाल (बाउंस थ्योरी) की ओर ले जाएगा। यह नतीजे मार्क्सवादी-लेनिनवादी तार्किक भौतिकवाद के लिए काफी सुविधाजनक थे। वह इसलिए कि इसके सहारे ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में असुविधा पहुंचाने वाले सवाल टाले जा सकते थे। तभी यह तर्क सोवियत के वैज्ञानिकों के लिए ‘आर्टिकल ऑफ फेथ’ बन गए।
हॉकिंग अपने भाषण में आगे कहते हैं कि हमने साबित कर दिया कि ब्रह्मांड उछल नहीं सकता। रोजर पेनरोज के साथ मैंने यह दिखाया कि अगर आइंस्टीन का सामान्य सापेक्षता सिद्धांत सही है, तो वहां एक सिंगुलैरिटी होगा। सिंगुलैरिटी अर्थात असीमित घनत्व और स्पेस-टाइम कर्वेचर वाला एक ऐसा बिंदु, जहां से समय की शुरुआत होती है। इसका सीधा मतलब था कि ब्रह्मांड उछल सकता है यह सिद्धांत पूरी तरह खारिज हुआ।
आपके आस-पास भी सीएमबी मौजूद
फिर लौटते हैं सीबीएम पर। गणितज्ञ रोजर पेनरोज और स्टीफन हॉकिंग के सिंगुलैरिटी वाले विचार को सबूत का भी बल मिल गया। यह पेनजियास और विल्सन की खोज सीएमबी ही थी, जिसमें बताया गया था कि समूचे स्पेस में धुंधली और निस्तेज सूक्ष्म तरंगें (माइक्रोवेव) फैली हैं।
सीएमबी यानी ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग पृष्ठभूमि को आप धरती पर भी देख सकते हैं। घरेलू उपयोग में आने वाले माइक्रोवेव ओवन में सूक्ष्म तरंगें होती हैं जो स्पेस की सीएमबी से बेहद ताकतवर हैं। वहां के माइक्रोवेव में पिज्जा गर्म होने के बजाए जम जाएगा। वह इसलिए कि 13.8 अरब वर्ष बाद उसका तापमान -271.3 डिग्री सेंटीग्रेड है।
ब्रह्मांड के सूक्ष्म तरंगों का दर्शन आप अपने टेलीविजन पर भी कर सकते हैं। अपने टेलीविजन से सेटअप बॉक्स या एंटीना का तार निकाल दें। फिर, टीवी स्क्रीन पर किसी भी चैनल में असंख्य झिलमिलाते हुए सफेद काले बिंदु दिखेंगे। यह सीएमबी के कारण ही दिखाई देते हैं। शुरुआत में ब्रह्मांड से बेहद गर्म और सघन दशा में जो विकिरण निकली, वही आज अवशेष के तौर पर सीएमबी हैं। पेनरोज के सिंगुलैरिटी वाले गणितीय सूत्र और स्टीफन हॉकिंग ने यह तो बता दिया कि ब्रह्मांड शुरू हुआ था लेकिन यह नहीं बताया कि यह कैसे शुरू हुआ था?
विस्तार की दर को लेकर रस्साकशी
इस खोज के 55 वर्ष बाद सीएमबी और इसके अध्ययन से निकलने वाले परिणाम ऐसे भौतिकविदों के लिए एक विवादास्पद मुद्दा बन गए हैं जो ब्रह्मांड के विस्तार की दर पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। अप्रैल 2019 में संयुक्त राज्य में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में एडम रीस और उनके सहयोगियों ने चौंकाने वाले नतीजे के साथ बताया कि यूनिवर्स पहले से ज्ञात की तुलना में बहुत तेजी से विस्तार कर रहा है। वैज्ञानिक दो अलग-अलग तरीकों से ब्रह्मांड के विस्तार की दर या हबल कांस्टेंट को मापते हैं।
पहला तरीका वर्तमान समय में दूर के सितारों और आकाशगंगाओं के व्यवहार को देखकर और उस दर की गणना करना है, जिस पर वे एक दूसरे से दूर जा रहे हैं। यह केवल पृथ्वी पर और अंतरिक्ष में स्थित आधुनिक दूरबीनों के साथ ही संभव हो पाया है, जैसे हबल स्पेस टेलीस्कोप, जो 1990 में लॉन्च किया गया था। यह दूरबीन सितारों और उनकी गति व विकिरणों (प्रकाश भी) का सीधा अवलोकन करने में खगोलविदों की मदद करती हैं।
ब्रह्मांड के विस्तार की दर को मापने का दूसरा तरीका सीएमबी और अन्य विकिरण की पिछली विशेषताओं का अध्ययन है। इस आधार पर ब्रह्मांड के जन्म के समय का और उसके बाद की कक्षा का अध्ययन किया गया। सीएमबी को मुख्य रूप से वैज्ञानिकों ने 2009 से 2013 तक यूरोपीय स्पेस एजेंसी द्वारा संचालित प्लैंक उपग्रह के पर्यवेक्षण का उपयोग करके मापा था।
पिलर्स ऑफ क्रिएशन: वह नेबुला जिससे तारों का जन्म हुआ
रीस के शोध में पहली विधि यानी तारों और आकाशगंगाओं के व्यवहार को देखकर की गई गणना का उपयोग किया गया है। इसमें यह निष्कर्ष निकाला गया है कि ब्रह्मांड के विस्तार की दर 73.4 किलोमीटर प्रति सेकंड प्रति मेगा पार्सेक (किमी/सेकंड/एमपीसी) है, जबकि सीएमबी के आधार पर मापे गए ब्रह्मांड के विस्तार की दर 67.4 (किमी/सेकंड/एमपीसी) है।
रीस का कहना है कि ब्रह्मांड का विस्तार सीएमबी माप से 10 फीसदी ज्यादा तेज हो रहा है और ब्रह्मांड के विस्तार की दर का जो अंतर है, उसमें किसी भी तरह की त्रुटि नहीं है। रीस को पहले ऐसा लगा था कि हमारे माप के तरीके में हासिल हुआ अंतर किसी तरह की त्रुटि है, लेकिन अब यह पूरी तरह से सच है कि ब्रह्मांड का विस्तार ज्यादा तेज हो रहा है। ब्रह्मांड के विस्तार की दर को लेकर की गई गणना (प्रोबेबिलिटी) में पहले त्रुटि की संभावना तीन में एक बार थी तो अब यह घटकर एक लाख में एक बार हो गई है। इसलिए विस्तार की दर का निष्कर्ष निश्चित रूप से सही है।
निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए रीस और अन्य वैज्ञानिकों ने हबल स्पेस टेलीस्कोप के जरिए दूधिया आकाशगंगा (मिल्की-वे) के पड़ोस में मौजूद वृहत मैग्लेनिक मेघ आकाशगंगा में कुछ मद्धिम और चमकदार होते तारों का अध्ययन किया। इन चमकदार तारों को सिफिड परिवर्ती तारा (सिफिड वैरिएबल्स) भी कहते हैं। ऐसे तारों की चमक संबंधी गतिविधि का अनुमान वैज्ञानिक आसानी से लगा सकते हैं। वहीं, गैलेक्सी और बड़े पैमाने की दूरी मापने वाले वैज्ञानिकों के लिए यह तारे मील के पत्थर जैसे हैं। इन्हें स्टैंडर्ड कैंडल्स भी कहा जाता है।
ब्रह्मांड तेजी से विस्तार कर रहा है, यह साबित करने के लिए रीस एक तरीका अपनाते हैं। उन्होंने स्टैंडर्ड कैंडल्स जिसे टाइप 1ए सुपरनोवा के रूप में जाना जाता है, उसका अध्ययन 1998 में किया। सितारों के जीवन का जब अंत होता है तो उनमें एक शानदार विस्फोट होता है। इसी को सुपरनोवा कहते हैं। इस खोज के लिए रीस ने ब्रायन श्मिट और सॉल पर्लमटर के साथ 2011 में भौतिकी का नोबेल जीता है। लेकिन यह महत्वपूर्ण सवाल है कि ब्रह्मांड वास्तव में विस्तार कर रहा है? इस नतीजे पर वैज्ञानिक कैसे पहुंचे। इसके लिए आपको 1930 की कुछ बातों को खंगालना पड़ेगा।
बिग बैंग और विस्तार
आधुनिक खगोलशास्त्र में सबसे अहम खोज 1930 में हुई थी। अमेरिकी खगोलविद एडविन हबल ने पहली बार बताया कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। उन्होंने अपने पर्यवेक्षण में यह पाया कि हमसे काफी दूर आकाशगंगाएं समय के साथ गतिशील हैं। इस व्याख्या ने उस पुराने विचार को तोड़ दिया जिसमें कहा गया था कि ब्रह्मांड स्थिर है।
वहीं, बिग-बैंग नाम का पहली बार इस्तेमाल ब्रिटेन के भौतिकविद फ्रेड होयल ने किया था। 1949 में एक रेडियो कार्यक्रम के दौरान फ्रेड ने इस नाम का इस्तेमाल तिरस्कार के भाव से किया था। वह इस सिद्धांत से सहमत नहीं थे। बहरहाल, भौतिकविदों ने बिग-बैंग सिद्धांत का निर्माण किया और उसका सार निकाला कि वह स्थान जहां से ब्रह्मांड का विस्तार शुरू हुआ उस बिंदु को सिंगुलरिटी कहते हैं, जहां पर घनत्व और गुरुत्व दोनों अनंत हैं।
बिग बैंग का स्वरूप
वैज्ञानिक बताते हैं कि बिग बैंग यानी महाविस्फोट सामान्य नजर वाले विस्फोट से अलग है। यह किसी एक बिंदु पर नहीं हुआ, बल्कि ब्रह्मांड की हर जगह ही एक बिंदु थी और सभी जगह एक साथ विस्फोट उठा था। इसके छोटे कण किसी बाहरी क्षेत्र में छितराए हुए नहीं थे या कि यह किसी कमरे में एक बिंदु पर हुए विस्फोट जैसा नहीं था।
बिग-बैंग के एक सेकेंड के पहले अंश में ही ब्रह्मांड का विस्तार असाधारण दर से हुआ। आश्चर्य से भर देने वाले बेहद छोटे से पल में ब्रह्मांड परमाणु के नाभिक से शुरू होकर रेत के कण के आकार तक पहुंचा। यह प्रक्रिया कॉस्मिक इनफ्लेशन थी। जब विस्तार मंद हुआ तो वो ताकतें जो इस विस्तार का कारण थीं संभावित तौर पर वे पदार्थ और ऊर्जा में बदलकर ब्रह्मांड में भर गईं। याद रखिए इनफ्लेशन ही वह कारण है, जिससे ब्रह्मांड और सीएमबी सभी दिशाओं में एक समान हैं।
शुरुआती अवस्था में ब्रह्मांड बेहद गर्म, सघन था और उप-परमाण्विक कण (सबअटॉमिक पार्टिकल्स) जैसे प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन से बना था। जब ब्रह्मांड ठंडा हुआ यह सारे कण एक-साथ जुड़े और इन्होंने पहले परमाणु का निर्माण किया, जिसमें अधिकांश हाइड्रोजन और हीलियम थे। ब्रह्मांड में विशेष तौर पर तारों में अब भी सबसे ज्यादा यही पदार्थ है क्योंकि तारे की चमक का राज हाइड्रोजन और हीलियम ही है। तारे ब्रह्मांड के इसी रॉ मटेरियल का इस्तेमाल करके चमकते हैं।
तारा, आकाशगंगा और इंसान
तारे यानि वह खगोलीय पिंड, जो खुद प्रकाशित होते हैं; का जन्म बिग-बैंग के 40 करोड़ (400 मिलियन) वर्ष बाद हुआ था। वहीं, आकाशगंगाएं यानि तारों का समूह; एक अरब वर्षों के बाद आईं और सौर प्रणाली 8.7 अरब वर्षों के बाद बनी। ब्रह्मांड की कहानी में मनुष्य हाल ही में आया है मानव का पूरा इतिहास केवल ब्रह्मांडीय काल पर एक छोटी सी बिंदी के रूप में दर्शाया जा सकता है। फिर भी, मानव जाति ने पिछले कुछ सौ वर्षों में ब्रह्मांड के बारे में बहुत कुछ ज्ञान इकट्ठा किया है। लेकिन वह सभी ज्ञान ब्रह्मांड के 5 प्रतिशत की प्रकृति के बारे में ही बताते हैं। ब्रह्मांड की शेष प्रकृति पूरी तरह से मानवता के लिए अज्ञात है या फिर अंधेरे में है।
विज्ञान के मतभेद
अल्बर्ट आइंस्टीन का पहले यह मत था कि ब्रह्मांड स्थिर है। यह न ही विस्तारित हो रहा है और न ही सिकुड़ रहा है। वह एक कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट के साथ आए थे, जिसे वैक्यूम की ऊर्जा के रूप में भी वर्णित किया गया है। 1930 ही वह वर्ष था जब आइंस्टाइन और हबल के बीच पहली मुलाकात हुई थी। आइंस्टाइन ने यह स्वीकार किया कि कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट उनकी सबसे बड़ी भूल थी। ब्रह्मांड विस्तार की बात को उन्होंने बाद में स्वीकारा। वहीं, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि डार्क एनर्जी और कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट एक ही इकाई के दो अलग-अलग भाव हैं।
आकाशगंगाओं के समूहों की गति और पूरे ब्रह्मांड की संरचना को वृहत पैमाने पर समझाने के लिए डार्क मैटर का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव बेहद जरूरी है। जबकि छोटे पैमाने पर यानी पृथ्वी या किसी भी सार्थक तरीके से मनुष्यों की उत्पत्ति और विकास की गति को प्रभावित करने के लिए डार्क मैटर का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव बेहद कम है।
ब्रह्मांड की शुरुआत के लिए बिग-बैंग का समर्थन करने वाले वैज्ञानिक इनफ्लेशन (नाभिक से रेत के कण आकार तक का शुरुआती ब्रह्मांड ) को मानते हैं। ऐसे वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि वृहत पैमाने पर ब्रह्मांड को देखा जाए तो उसकी एकरूपता टूटी हुई नहीं है। जहां भी यह एकरूपता टूटी हुई प्रतीत होती है वह नकारने योग्य है। जबकि बिग-बैंग की थ्योरी पर सवाल उठाने वाले वैज्ञानिक इसी पर जोर देते हैं कि यदि ब्रह्मांड की शुरुआत में इनफ्लेशन होता तो उसकी एकरूपता कहीं नहीं टूटती। बिग-बैंग के अस्तित्व पर वैज्ञानिकों के दो धड़ों की बहस इस एक बिंदु पर भी जारी है।
यदि ब्रह्मांड का विस्तार तेजी से हो रहा है तो इसका भविष्य क्या है?
यह मानवता के भविष्य के लिए कई निहितार्थों के साथ एक ठंडा, अंधेरा और पृथक स्थान बनने जा रहा है। कुछ अरब वर्षों में मिल्की-वे आकाशगंगा अपने एक पड़ोसी आकाशगंगा एंड्रोमेडा से टकराएगी। सबसे पहले यह नए तारों का गठन केंद्र या नेबुला पैदा करेगा और इसकी वजह से पृथ्वी के रात के आकाश में बहुत अधिक सितारे होंगे।
यदि कोई भी मनुष्य या अन्य बुद्धिमान प्रजातियां उस समय तक जीवित बची रहती हैं, लेकिन समय के साथ सभी नए नेबुला की सक्रियता कम हो जाएगी। नतीजतन, मौजूदा तारे खुद-ब-खुद मर जाएंगे। क्योंकि उन्हें जीवित रखे रहने वाला ईंधन या कच्चा माल (हाइड्रोजन और हीलियम) खत्म हो जाएगा। यह सब होने से बहुत पहले पृथ्वी मरते हुए सूर्य के जरिए निगल ली जाएगी। यह सूर्य विस्तारित होकर एक लाल दानव तारे में बदल जाएगा।
हर तारा जब मरने को होता है तो वह काफी हद तक फैलता है और फिर उसमें सुपरनोवा जैसा विस्फोट होता है। यह भी एक संभावना है कि सूर्य और एक दूसरे तारे के बीच में कोई क्षुद्र ग्रह (एस्टेरॉयड) अपने पथ से भटक कर पृथ्वी से टकरा जाए। इसका मतलब होगा कि पृथ्वी पर जीवन और मानवता खत्म हो जाए। बचने की एक ही संभावना है कि मनुष्य ताकतवर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बदौलत किसी और सुरक्षित और जीवन वाले सौर ग्रह को खोज कर उसे अपना डेरा और ठिकाना बना ले। यह सभी परिस्थितियां अनुमान भर हैं और भी कई अलग तरह की घटनाएं घटित हो सकती हैं।
ब्रह्मांड आखिर क्यों मौजूद है और इसका उद्देश्य क्या है?
मनुष्य अगर इस सवाल का जवाब ढूंढ ले तो भविष्य के बारे में अधिक से अधिक जाना जा सकता है। कई प्राचीन सभ्यताओं और आधुनिक धर्मों ने ब्रह्मांड का मकसद बताया है। हमारे पूर्वज अपनी-अपनी समझ से इस सवाल से जूझते रहे हैं। ऋग्वेद का एक सूक्त मजेदार है जिसे दूरदर्शन के पुराने सीरियल भारत एक खोज में बखूबी इस्तेमाल किया गया है;
सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं
आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहां
किसने ढका था
उस पल तो
अगम अतल जल भी कहां था
सृष्टि का कौन है कर्ता?
कर्ता है या है विकर्ता?
ऊंचे आकाश में रहता
सदा अध्यक्ष बना रहता
वही सचमुच में जानता
या नहीं भी जानता
है किसी को नहीं पता
नहीं पता
नहीं है पता
नहीं है पता
भारत एक खोज देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की रचना है। इसमें प्राचीन काल से अपने समय तक के भारत व उसके मिजाज को समझाने की कोशिश तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू की है।