नई दिल्ली। हाइड्रोजन हवा में स्वतंत्र रूप से नहीं मिलता। धरती के भीतर भी हाइड्रोजन अणु मौजूद नहीं है। यौगिकों में ही इसकी मौजूदगी है। अमूमन यह हाइड्रोकार्बन ईंधन में मिलता है। तेल, कोयला या प्राकृतिक गैस तथा बॉयोमास और जैविक अपशिष्ट पदार्थ इसके स्रोत हैं। यह सब हाइड्रोजन और कार्बन परमाणुओं से बने हैं। इनके इस्तेमाल से कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा मिलता है। नतीजा ग्लोबल वार्मिंग के तौर पर रहता है। इसके अलावा पानी की बूंदों में हाइड्रोजन बड़ी मात्रा में पाया जाता है।
इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया से पानी को तोड़कर उसके हाइड्रोजन व ऑक्सीजन अणु अलग हो सकते हैं। इसकी तकनीक इस वक्त मौजूद भी है। हालांकि, इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया पूरी करने के लिए बड़ी मात्रा में बिजली की जरूरत होती है। यह या तो पारंपरिक ऊर्जा स्रोत से मिल सकती है या अक्षय ऊर्जा स्रोतों से।
हाइड्रोजन की हीट वैल्यू ज्यादा
Heat Value ज्यादा होने से बतौर ईंधन हाइड्रोजन बहुत प्रभावी है। असल में किसी ईंधन की गुणवत्ता उसकी Heat Value (जलने के दौरान उससे मिलने वाली ऊष्मा) पर निर्भर करती है। इसका मतलब एक किग्रा ईंधन के जलने से मिलने वाली ऊष्मा है। यह संबंधित ईंधन का उष्मीय मान कहलाती है। इसे किलो जूल प्रति किग्रा (Kj/kg) में मापा जाता है। जिसका उष्मीय मान ज्यादा होगा, वह ईंधन बेहतर होगा। हाइड्रोजन की Heat Value 120-142 Mj/kg होती है। जबकि पेट्रोल व गैसोलीन, डीजल, प्राकृतिक गैस आदि की Heat Value क्रमश: 44-46 मेगा जूल/किग्रा (Kj/kg), 42-46 Kj/kg व 42-55 Kj/kg है। जाहिर तौर पर हाइड्रोजन ईंधन अपने समकक्षों से ज्यादा प्रभावी है। वैसे, एक मेगा जूल में 1000 किलो जूल होता है।
यदि अक्षय ऊर्जा स्रोत से इस ईंधन को तैयार किया जाए तो यह कार्बन डाइऑक्साइड से पूरी तरह मुक्त होगा। इसके अलावा पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा में निरंतरता की जो समस्या है, उसका समाधान भी इसमें है। बसंत और पतझड़ के मौसम में जब अक्षय ऊर्जा की मांग कम होती है, तब अतिरिक्त बिजली का इस्तेमाल पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के अणुओं को अलग करने में किया जा सकता है। हाइड्रोजन का भंडारण किया जा सकता है या पाइपलाइन से भेजा जा सकता है।
तरह-तरह के हाइड्रोजन
स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के लिए हाइड्रोजन यौगिक के रूप में धरती पर सबसे प्रचुर तत्वों में से एक है। इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया से इसे इसके यौगिकों से अलग किया जाता है।
ग्रीन और ग्रे हाइड्रोजन का बंटवारा विद्युत अपघटन प्रक्रिया में लगने वाली ऊर्जा से होता है। इसके अलावा हाइड्रोजन का उत्पादन तापीय विधि व प्रकाश अपघटन विधि से भी होता है।
ग्रीन हाइड्रोजन अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का उपयोग करके जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा निर्मित होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है। इसके तहत बिजली से जल (H2O) को हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O2) में तोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया में जल और जलवाष्प भी मिलती है। पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अणुओं में तोड़ने वाले प्लांट को चलाने के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों का बड़े पैमाने पर विस्तार पड़ेगा। अक्षय ऊर्जा केवल 45-50 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन में कमी में मदद कर सकती है। जबकि ग्रीन हाइड्रोजन शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने में मददगार हो सकती है।
फिलहाल हाइड्रोजन उत्पादन का प्रचलित तरीका प्राकृतिक गैस से हाइड्रोजन अलग करने का है। प्राकृतिक गैस को भाप से प्रतिक्रिया कराने पर हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड निकलते हैं। मीथेन से हाइड्रोजन बनाने के इस परंपरागत तरीके में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है इसलिए यह जलवायु के लिए अनुकूल नहीं है। इस तरह से बनाए गए हाइड्रोजन को ग्रे हाइड्रोजन कहते हैं।
विश्व में 96 प्रतिशत हाइड्रोजन का उत्पादन हाइड्रोकार्बन से किया जा रहा है। जबकि चार फीसदी जल के विद्युत अपघटन से होता है। तेल शोधक संयंत्र एवं उर्वरक संयंत्र दो बड़े क्षेत्र हैं, जो भारत में हाइड्रोजन के उत्पादक तथा उपभोक्ता हैं। इसका उत्पादन क्लोरो अल्कली उद्योग में उप उत्पाद के रूप में होता है।
ब्लू हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस से निकाला जाता है। इसके लिए दबाव डालकर प्राकृतिक गैस को गरम किया जाता है। इससे हाइड्रोजन अपने हाइड्रोकार्बन से अलग हो जाती है। इस प्रक्रिया में भी कार्बन का उत्सर्जन होता है।
ब्राउन हाइड्रोजन का उत्पादन कोयले का उपयोग करके किया जाता है, जहां उत्सर्जन को वायुमंडल में निष्कासित किया जाता है।
इस तरह काम करता है हाइड्रोजन फ्यूज
इसके लिए गाड़ियों में फ्यूल सेल लगेंगे। फ्यूल सेल को बैटरी मान सकते हैं, जिसमें कैथोड और एनोड नाम के इलेक्ट्रोड लगे होते हैं। इन इलेक्ट्रोड से रासायनिक प्रतिक्रिया होती है और उसी से ऊर्जा पैदा की जाती है। फ्यूल सेल ही हाइड्रोजन गैस की खपत करके ऊर्जा देते हैं। अंत में अवशेष के रूप में पानी बचेगा। इसमें धुआं निकलने की गुंजाइश बिल्कुल नहीं है।
भविष्य का ईंधन है ग्रीन हाइड्रोजन
ग्रीन हाइड्रोजन को पेट्रोल व डीजल के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। यह पारंपरिक ईंधन की तुलना में काफी सस्ता होगा। साल 2030 तक कारों के अलावा बड़ी-बड़ी गाड़ियों को भी इससे चलाया जा सकेगा। इसमें ट्रेन भी शामिल हो सकती है। भारतीय रेलवे इस दिशा में काम कर रहा है। जेट ईंधन की तुलना में ग्रीन हाइड्रोजन का ऊर्जा घनत्व तीन गुना ज्यादा होने से यह विमानों के लिए शून्य-उत्सर्जन वाला ईंधन बन सकता है। यूरोपीय विमान निर्माता एयरबस का मानना है कि यह हो सकता है कि 2035 तक हाइड्रोजन से विमान उड़ने लगेंगे।
दुनिया भर में ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर होड़ चल रही है। सऊदी अरब, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, यूरोपीय संघ, जापान समेत दूसरे देश इसके लिए संजीदा हैं।
हाइड्रोजन ईंधन और भारत
भारत में 1970 के दशक में ग्रीन हाइड्रोजन पर काम शुरू हुआ था, जिसमें अच्छी सफलता मिली थी। इसी साल फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन बना, जो बाद में नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड के तौर पर परिवर्तित कर दिया गया। इसके पास उस वक्त एक ग्रीन पॉवर प्लांट था जो भाखड़ा नांगल बांध से जुड़ा था। भाखड़ा के पानी को उपयोग में लेने के लिए एक वाटर इलेक्ट्रोलिसिस प्लांट बनाया गया था। शुरू में इस प्लांट से ग्रीन हाइड्रोजन बनाया जाता था, लेकिन बाद में नाइट्रोजन बनाया जाने लगा जो कि ग्रीन एनर्जी का ही एक हिस्सा था। यह नाइट्रोजन गैस भी पानी से बनती थी, इसलिए इससे पैदा होने वाली बिजली ग्रीन एनर्जी की श्रेणी में दर्ज थी।
यह तकनीक महंगी थी। अब ध्यान इसकी लागत कम करने पर है। यह गैस तभी सस्ती होगी जब बड़ी मात्रा में इसका उत्पादन होगा। सौर ऊर्जा से इसे समझा जा सकता है। 2013 में देश में पहला सौर ऊर्जा प्लांट लगा था, तब प्रति यूनिट खर्च 16 रुपये थी। आज यह कॉस्ट 2 रुपये तक आ गई है। यह तभी हो पाया जब बड़ी मात्रा में सौर ऊर्जा पैदा की गई। यही बात ग्रीन हाइड्रोजन के लिए लागू होती है।
अभी भी एक किलोग्राम ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में 3-6.5 डॉलर खर्च होते हैं। इसकी कीमत घटाने में सौर ऊर्जा मददगार साबित हो सकती है। असल में देश में सौर ऊर्जा की संभावनाएं ज्यादा हैं। उत्पादन बढ़ने पर यह और भी सस्ती होगी। लेकिन इसका निर्यात नहीं हो सकता है। इसलिए सौर ऊर्जा से ग्रीन हाइड्रोजन बनेगा और उस ऊर्जा को निर्यात कर भारत अच्छी कमाई करेगा। भारत का ध्यान आने वाले समय में ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में ग्लोबल हब बनने पर है।
हाइड्रोजन मिशन लागू होने से कंपनी इंडियन ऑयल, ओएनजीसी, एनटीपीसी समेत रिलायंस, टाटा और अडानी ग्रुप की कंपनियों ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। आईआईटी और देश की बड़ी-बड़ी रिसर्च कंपनियां हाइड्रोजन एनर्जी के शोध कर रही हैं। 2050 तक भारत की अक्षय ऊर्जा (आरई) की हिस्सेदारी 50 फीसदी पहुंचने की उम्मीद है। ग्रीन हाइड्रोजन की इसमें बड़ी भूमिका होगी।
राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन
केन्द्रीय बजट 2021-22 के तहत राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन की घोषणा की गई। मिशन ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन उपयोग को बढ़ावा देने का रोडमैप प्रस्तुत करता है। राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन के क्रियान्वयन की नोडल एजेंसी नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय है। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन इस्पात एवं सीमेंट जैसे भारी उद्योगों से न केवल, उत्सर्जन करने के लिए आवश्यक बल्कि यह स्वच्छ ऊर्जा आधारित इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए मार्ग प्रशस्त करने हेतु अहम है। मिशन का मकसद हाइड्रोजन ऊर्जा का उपयोग कर हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।

हाइड्रोजन ईंधन के इस्तेमाल की सीमा
बतौर ईंधन हाइड्रोजन के इस्तेमाल की सीमाएं भी हैं। इसका घनत्व बहुत कम, 0.08 है। यह मीथेन से भी कम है। घनत्व कम होने का मतलब यह भी है कि इसका आयतन ज्यादा है और भंडारण के लिए ज्यादा दबाव चाहिए होता है। वायुमंडल के दबाव से 700 गुना ज्यादा दबाव इसके भंडारण के लिए चाहिए। तरल रूप में रखने के लिए इसे -253 डिग्री सेल्सियस तापमान पर ठंडा करना पड़ता है। फिलहाल हाइड्रोजन भंडारण के लिये 350 बार/700 बार उच्च दबाव वाले सिलेंडर उपयोग में लाए जाते हैं। पाइपलाइन के बिना हाइड्रोजन संग्रह करना और इसका परिवहन बहुत कठिन है।
हाइड्रोजन में प्राकृतिक गैस की तुलना में एक चौथाई ऊर्जा होती है। यह धातु को भुरभुरा बना सकता है। छोटे से छोटे छेद से भी इसका रिसाव हो सकता है। यह वास्तव में विस्फोटक है। फिर, हाइड्रोजन का ऊर्जा घनत्व बहुत कम है। इसलिए इसके भंडारण के लिए बड़ी जगह की आवश्यकता है। ऑटोमोबाइल अनुप्रयोगों के लिये, हाइड्रोजन का कॉम्पैक्ट और कुशल तरीके से पर्याप्त मात्रा में स्टोर करने की आवश्यकता हैं ताकि पुन: ईंधन भरने से पहले एक निश्चित ड्राइविंग रेंज प्रदान की जा सके।
हाइड्रोजन एक रंगहीन और गंधहीन गैस है तथा दहन के बाद एक रंगहीन लौ पैदा करता है। इसलिए सार्वजनिक स्थानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये तथा गैस रिसाव का पता लगाने के लिये विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है। यह कुदरती तौर पर भी नहीं मिलता। यौगिकों से अलग करने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है।
हाइड्रोजन 212
ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने महत्वाकांक्षी लक्ष्य ‘हाइड्रोजन 212’ तय किया गया है। इसमें ग्रीन हाइड्रोजन से जुड़ी तीन चीजें हैं;
. उत्पादन लागत 2 डॉलर/किलोग्राम से कम लाना।
. भंडारण + वितरण + ईंधन भरने की लागत 1 डॉलर/किलोग्राम से कम करना।
. आरओआई के साथ मौजूदा ऊर्जा के स्थान पर ग्रीन हाइड्रोजन को प्रतिस्थापित करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी के लिए समय सीमा 2 साल से कम रखना।
अक्षय ऊर्जा व जीवाश्म ईंधन
ऊर्जा के वो प्राकृतिक स्रोत, जिनका क्षय नहीं होता या जिनका नवीनीकरण होता रहता है। इस स्रोत से ऊर्जा बार-बार मिल सकती है। इसके उत्पादन के दौरान कोई प्रदूषण नहीं फैलता, यह प्रदूषणकारी भी नहीं हैं, उन्हे अक्षय ऊर्जा के स्रोत कहा जाता है। जैसे-सूर्य, जल, पवन, ज्वार-भाटा, भूताप आदि।
जबकि जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) एक बार ही इस्तेमाल होने वाला ऊर्जा स्रोत है। इसका नवीनीकरण नहीं हो सकता। धरती पर इसकी मात्रा सीमित है। यह मरे हुए जानवरों और पेड़-पौधों के अवशेषों के लंबे समय में होने वाली तब्दीली से बदलता है। प्रक्रिया पूरी होने में लाखों साल लगते हैं। पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला और प्राकृतिक गैस जीवाश्म ईंधन के उदाहरण हैं। इसके इस्तेमाल ने ही दुनिया का तापमान बढ़ाया है।