पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में जिस कदर तनाव बढ़ा, उसमें ड्रोन के इस्तेमाल की अहमियत भी उजागर हुई है। तकनीकी तौर पर देखें तो ड्रोन एक तरह से उड़ने वाला रोबोट है। इसे सॉफ्टवेयर सिस्टम से नियंत्रित किया जा सकता है। इसके सॉफ्टवेयर में उड़ान योजना, उड़ान के रास्तों समेत दूसरी जरूरी चीजों की प्रोग्रामिंग की जा सकती है। यह ऑन बोर्ड सेंसर और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के साथ मिलकर काम करता है। कौन सा ड्रोन कितना पेलोड या अतिरिक्त भार ले जा सकता है, यह उसके इंजन की क्षमता पर निर्भर करता है। ड्रोन पर पेलोड जितना ज्यादा बढ़ेगा, उसकी ज्यादा दूर जाने की क्षमता उतनी ही कम होती जाएगी।
इंपीरियल वॉर म्यूजियम की वेबसाइट बताती है कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका और इंग्लैंड ने रिमोटली पाइलेटेड व्हिकल (आरपीवी ) बनाया था। 1917-1918 में इसका परीक्षण किया गया। पहले यह रेडियो से कंट्रोल होता था। बाद में इसकी तकनीक में तेजी से सुधार हुआ। 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया है। हाल में ही रूस-यूक्रेन की लड़ाई में ड्रोन का प्रयोग हो रहा है।
भारत और पाकिस्तान के हालिया तनाव में भी ड्रोन की भूमिका अहम है। पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने कहा था कि उनका देश ड्रोन के हमलों की जद में था। कराची-लाहौर जैसे बड़े आबादी वाले शहरों को ड्रोन के जरिए निशाना बनाया गया है। वहीं, भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी ने बताया कि भारत ने लाहौर में सफलतापूर्वक एयर डिफेंस सिस्टम को तबाह कर दिया है। दूसरी तरफ भारतीय सेना की तरफ से बताया गया कि युद्ध विराम के समझौते के बाद की रातों में भी पाकिस्तान की तरफ से भारतीय सीमाों ड्रोन भेजे गए, जिसे भारतीय एयर डिफेंस ने नाकाम कर दिया।

भारत के पास ड्रोन
भारतीय सेना ने 1990 के दशक में इजरायल से मानव रहित हवाई वाहन या यूएवी खरीदना शुरू किया। भारत ने पहली बार 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध के दौरान नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर फोटो-टोही के लिए सैन्य ड्रोन का इस्तेमाल किया था। तब से अब तक की करीब तीन दशक की यात्रा में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के साथ निजी क्षेत्र ने भी यूएवी और ड्रोन प्रौद्योगिकी को बेहतर करने की दिशा में काम किया है।
भारत के पास कई प्रकार के ड्रोन हैं। पहला डिजाइन ड्रोन निशांत है। इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने विकसित किया था। इसने 1995 में अपनी पहली उड़ान भरी थी। यह कार्यक्रम 2018 में समाप्त हो गया। यह अभी सेवा में भी हैं।
उन्नत मानव रहित विमान (यूएवी) लक्ष्य का विकास डीआरडीओ ने किया है। वहीं, निशांत एक बहु-मिशन यूएवी है। इसे 24 घंटे में में किसी भी समय मोबाइल हाइड्रो-न्यूमेटिक लांचर से लॉन्च किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल युद्ध क्षेत्र की निगरानी, लक्ष्य की ट्रैकिंग और स्थानीयकरण के लिए किया जाता है। निशांत को भारतीय सेना में शामिल किया गया है।
दूसरी तरफ पंछी भी लॉन्चर आधारित सामरिक यूएवी है। इसमें पारंपरिक टेक-ऑफ व लैंडिंग की क्षमता है। दक्ष विस्फोटक उपकरणों की पहचान करने के साथ संचालन का बहुमुखी उपकरण है। इसका उपयोग परमाणु और रासायनिक प्रदूषण के स्तर के सर्वेक्षण और निगरानी के लिए भी किया जा सकता है।
अप्रयुक्त आयुध हैंडलिंग रोबोट (यूएक्सओआर) एक किमी दूर से 1000 किलोग्राम तक के अप्रयुक्त आयुध (यूएक्सओ) अर्थात बम और मिसाइलों को संभालने, फैलाने और उनका पता लगाने में सक्षम है। कैट्स वॉरियर दुश्मन के इलाके में 700 किलोमीटर तक चुपके से घुसने में सक्षम होगा। रुस्तम-2 22,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर उड़ सकता है। यह करीब 20 घंटे तक हवा में रह सकता है। इसकी चाल 280 किमी/घंटा है। इससे कई तरह के पेलोड जैसे एमआरईओ, एलआरईओ, सिंथेटिक एपर्चर रडार, इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस, कम्युनिकेशन इंटेलिजेंस और सिचुएशनल अवेयरनेस पेलोड भेजा जा सकता है। इसे तीनों सेनाओं के लिए विकसित किया गया है।
डीआरडीओ ने सेंटर फॉर एयरबोर्न सिस्टम (सीएबीएस) के सहयोग से नेत्रा एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम का विकास किया है। यह एक मल्टी-सेंसर प्लेटफॉर्म है। नेत्रा के पास स्वदेशी सक्रिय इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे (एईएसए) रडार प्रणाली है। यह एम्ब्रेयर ईआरजे 145 विमान पर लगाई गई है। इससे मिसाइल, जहाज और वाहनों को ट्रैक किया जा सकता है। यह उड़ान के दौरान ईंधन ले सकता है, जिससे इसकी उड़ान अवधि नौ घंटे तक चली जाती है।
बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इजरायल से कई ड्रोन के सौदे हुए हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत के पास कई प्रकार के ड्रोन हैं। ये फौज पर निर्भर है कि वो मौके की नजाकत के हिसाब से कौन सा ड्रोन इस्तेमाल करती है। इस वक्त भारत कई देशों को ड्रोन निर्यात कर रहा है। अमेरिका, इसराइल और कई अन्य देश भारत से ड्रोन ले रहे हैं।
भारत ने तकरीबन 100 स्काई-स्ट्राइकर ड्रोन 2021 में लिया था, जिसकी रेंज तकरीबन 100 किलोमीटर की है। यह 10 किलो तक वॉरहेड ले जा सकता है। इनमें आवाज कम होती है। इसको बनाने वाली कंपनी का दावा है कि यह शांत, ना दिखाई देने वाले और अचानक हमला करने वाले हैं। वहीं, हैरोप ड्रोन का रेंज बहुत ज्यादा है। यह हार्पी का उन्नत संस्करण है। इसराइल निर्मित यह ड्रोन 1000 किलोमीटर तक जा सकता है और हवा में तकरीबन 9 घंटे तक उड़ान भर सकता है। पाकिस्तान ने दावा किया है कि भारत ने उसके खिलाफ हैरोप का इस्तेमाल किया है।
पाकिस्तान के पास ड्रोन
भारतीय सेना ने कहा कि जम्मू, पठानकोट और उधमपुर के सैन्य अड्डों पर पाकिस्तान ने बृहस्पतिवार रात हमला किया है, जिसे बेअसर कर दिया गया। इसमें पाकिस्तान ने तुर्की निर्मित ड्रोन का इस्तेमाल किया है। पाकिस्तान के पास स्वार्म ड्रोन है। विशेषज्ञों की मानें तो यह स्वार्म ग्रुप में चलते हैं, इनको मारना आसान नहीं है, इनमें से कई बच भी जाते हैं। ये छोटे-छोटे बैच में छोड़े जाते हैं लेकिन हवा में आने के बाद एक साथ हो जाते हैं। ये किसी टारगेट को निशाना भी बना सकते हैं और बचाव भी कर सकते हैं।
पाकिस्तान के पास शाहपार-2 ड्रोन भी हैं, जिनकी क्षमता 23000 फीट तक उड़ान भरने की है। अरब न्यूज के मुताबिक, नवंबर 2024 में शाहपार-3 का परीक्षण पाकिस्तान ने किया था। ये ड्रोन तकरीबन 35000 फीट की ऊंचाई तक जा सकता है। पाकिस्तान में दावा किया जा रहा है कि ये तकरीबन 500 किलो तक का पेलोड ले जा सकता है। इसके अलावा पाकिस्तान के पास तुर्की का बना अकिन्सी ड्रोन भी है। यह हवा से हवा और हवा से जमीन पर वार कर सकता है।
भारत का लक्ष्य
ड्रोन तकनीक के विकास में भारत ने 2030 तक महाशक्ति बनने का लक्ष्य रखा है। इसमें स्वदेशी विकास और विनिर्माण पर ध्यान है। इसके लिए सरकार कई स्तर पर काम कर रही है। मेक इन इंडिया के तहत ड्रोन के घरेलू विनिर्माण और निवेश को प्रोत्साहित करना है। वहीं, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भारतीय ड्रोन निर्माताओं को वित्तीय मदद देती है।
ड्रोन (संशोधन) नियम इसके संचालन के लिए विनियमन और लाइसेंसिंग आवश्यकताओं को सरल बनाता है। नए नियमों से भारत में गैर-वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए माइक्रो और नैनो ड्रोन उड़ाने के लिए नागरिक विमानन महानिदेशक से रिमोट पायलट प्रमाणपत्र (लाइसेंस) की आवश्यकता नहीं होगी। जबकि अन्य सभी ड्रोन गतिविधियों की अनुमति पूर्व अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ही दी जाएगी। डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म उड़ान, विनिर्माण समेत दूसरी गतिविधियों का लाइसेंस लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन की सुविधा देता है। इसमें निजी निवेश और स्टार्टअप को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
कई तरह के होते ड्रोन
आकार अलग-अलग: आकार के हिसाब से सबसे छोटा नैनो ड्रोन है। यह एक कीड़े जितना छोटा हो सकता है और आसानी से आपकी हथेली में फिट हो सकता है।अपने छोटे आकार और पंख के डिजाइन के कारण, नैनो ड्रोन बहुत सीमित स्थानों में उड़ सकते हैं और आसानी से इनका पता नहीं चलता। यह मुख्य रूप से जासूसी के काम में इस्तेमाल होते हैं।
माइक्रो ड्रोन से थोड़े बड़े करीब 50 सेमी से 2 मीटर आकार के भी ड्रोन हैं। इनके पंख आमतौर पर स्थिर होते हैं और इन्हें आसानी से हाथ से उठाकर हवा में फेंका जा सकता है। इनका उपयोग इनडोर उपकरण निरीक्षण के लिए किया जा सकता है। फोटोग्राफी के साथ ट्रैफिक प्रबंधन में भी इसका इस्तेमाल होता है।
मध्यम ड्रोन की आकार 12 मीटर तक होता है। इनका वजन 200 किलोग्राम तक होता है। इन्हें उठाने के लिए दो से तीन लोगों की आवश्यकता होती है। बड़े ड्रोन का आकार में छोटे विमानों के बराबर होता है। इनका इस्तेमाल मुख्य रूप से सैन्य उद्देश्यों जैसे निगरानी और रणनीति के लिए किया जाता है। सबसे उन्नत तकनीक के साथ यह लड़ाकू विमानों की जगह ले रहे हैं। इससे दुश्मन की युद्ध क्षमताओं का पता चल जाता है।
पे-लोड में भी फर्क: पेलोड क्षमता यानि ड्रोन कितना वजन उठा सकता है, इसके हिसाब से भी इसका वर्गीकरण किया जाता है। सबसे कम वजन उठाने वाले फेदरवेट ड्रोन आमतौर पर नैनोस्केल ड्रोन होते हैं। इनका वजन मात्र 11 ग्राम (0.011 किग्रा) होता है और यह केवल 100 ग्राम तक का पेलोड ही ले जा सकते हैं।
वहीं, हल्के ड्रोन का औसत वजन 200-1000 ग्राम होता है। इनकी औसत पेलोड क्षमता 150-270 ग्राम के बीच होती है। मध्यम वजन वाले ड्रोन का वजन 1-600 किलोग्राम (2.20-1323 पाउंड) के बीच है। इनकी भी दो श्रेणियां हैं; वाणिज्यिक ड्रोन और सैन्य ड्रोन।
उपभोक्ता और वाणिज्यिक मध्यम वजन वाले ड्रोन की पेलोड क्षमता औसतन 400-1460 ग्राम के बीच होती है। उपभोक्ता व वाणिज्यिक ड्रोन का एक उदाहरण JOUAV CW-15 है, जो तीन किलोग्राम तक पेलोड ले जाने में सक्षम है। सैन्य मध्य-भार वाले ड्रोन की पेलोड क्षमता 40 किग्रा से 150 किग्रा के बीच है।
भारी लिफ्ट ड्रोन मुख्य रूप से सैन्य ड्रोन हैं। इनका एक छोटा प्रतिशत डिलीवरी और उच्च परिशुद्धता मानचित्रण के लिए उपयोग किया जाता है। इन ड्रोन का वजन 160 किलोग्राम से अधिक होता है। इनमें से कुछ का वजन 1,000 किलोग्राम से अधिक होता है। उनकी पेलोड क्षमता 550 किलोग्राम या उससे भी ज्यादा होती है।
दूरी के हिसाब से श्रेणी: दूरी भी विभाजन का एक तरीका है। इसमें सबसे पहले बहुत निकट-सीमा वाले ड्रोन आते हैं। इनकी रेंज पांच किलोमीटर होती है और यह औसतन एक घंटे तक हवा में रह सकते हैं। वहीं, कम दूरी के ड्रोन 50 किलोमीटर दूर तक उड़ सकते हैं। अधिकतम छह घंटे की इनकी उड़ान होती है। बहुत ऊंचाई तक उड़ने की क्षमता की वजह से इन्हें अमूमन निगरानी के लिए सैन्य ड्रोन में इस्तेमाल किया जाता है। तीसरी श्रेणी के ड्रोन 150 किमी तक उड़ सकते हैं। बहुत शक्तिशाली बैटरियों के साथ यह 8-12 घंटे तक हवा में रह सकते हैं और आमतौर पर युद्ध के साथ-साथ निगरानी उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं।
मध्यम श्रेणी के ड्रोन 644 किलोमीटर तक उड़ान भर सकते हैं। यह 24 घंटे से ज्यादा समय तक 12,000 से 30,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ सकते हैं। इनका इस्तेमाल भी आम तौर पर युद्ध के साथ-साथ निगरानी के लिए होता है। लंबी दूरी के ड्रोन, जिन्हें धीरज वाले ड्रोन के रूप में भी जाना जाता है, तकनीकी और कार्यात्मक रूप से इन अन्य ड्रोनों से बेहतर हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि वे बिना अपना सिग्नल खोए 644 किमी से ज्यादा की यात्रा कर सकते हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से सैन्य निगरानी और जासूसी के लिए किया जाता है, लेकिन उनका उपयोग पेशेवरों द्वारा मौसम के पैटर्न, भूविज्ञान और भौगोलिक मानचित्रण को ट्रैक करने के लिए भी किया जाता है।
ऊर्जा इस्तेमाल का तरीका जुदा: विभाजन का एक अन्य तरीका ड्रोन के ऊर्जा स्रोत के इस्तेमाल का है। ज्यादातर ड्रोन के लिए बिजली का प्राथमिक स्रोत बैटरी है। जबकि बड़े आकार के ड्रोन के लिए ईंधन के रूप में गैसोलीन का उपयोग किया जाता है। यह ईंधन यह हल्का और सस्ता होता है। गैस से चलने वाले ड्रोन की उड़ान का समय लंबा होता है और पेलोड क्षमता भी अधिक होती है।
हाइड्रोजन से चलने वाले ड्रोन उच्च ऊंचाई पर आंतरिक दहन इंजन का उपयोग करने वाले कई ड्रोन की तुलना में अधिक कुशल होते हैं। यह कम वायु घनत्व के कारण अधिक गिरावट का सामना करते हैं। छोटे आंतरिक दहन इंजन कम शोर, शून्य-उत्सर्जन और महान सुरक्षा के साथ केवल सीमित परिस्थितियों में अधिकतम ईंधन दक्षता प्रदान करते हैं।
सौर ऊर्जा से चलने वाले ड्रोन सूर्य को ऊर्जा स्रोत के रूप में इस्तेमाल करते हैं। अपनी बैटरी चार्ज करने के लिए सूर्य के प्रकाश को बिजली में परिवर्तित करते हैं। जब तक सूरज उपलब्ध है, तब तक यह लंबी उड़ान भरने में सक्षम है।